Saturday, June 20, 2009

बहारों के दिन है या पतझर का मौसम ?

हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है । इस पर हम गर्व कर सकते है ।पर साथ वर्षों की जनतांत्रिक व्यवस्था के बाद भी आज हम आम जन की स्थिति सुधारने में कितने सफल हो सके हैं ,यह एक विचारणीय विषय है । आकडों में प्रगति के नए सोपान गिनाये जाते है पर जमीनी वास्तविकता कुछ और ही कहानी कहती है ।देश प्रगति कर रहा है ,विदेश में हमारी साख बढ़ी है ,महिलाओं के लिए काम हो रहा है ,गरीबों के लिए नयी नयी योजनाये लायी जा रहीं हैं । किंतु इनका लाभ आम आदमी तक कितना पंहुचा है ?

चुनावो में जनता की सहभागिता पचास प्रतिशत भी नहीं रहती है ,कन्या भ्रूण हत्या व महिलाओं पर अत्याचार बढ रहे है ,कानून व्यवस्था को आतंकवाद एवं नक्सलवाद की चुनोती निरंतर बढ रही है , गरीबों की हितैषी होने का दावा करने वाली सरकारें उनकी बढती भुखमरी नहीं देख पा रहीं है। आंकडो और वास्तविकता में जितना अन्तर हमारे देश में पाया जा रहा है उतना किसी भी विकसित लोकतंत्र में विश्व में नहीं दिखता ।

इस सम्बन्ध में मुझे बुंदेलखंड के प्रसिद्ध गीतकार ‘ मंजुल मयंक ’ की निम्नांकित पंक्तियाँ प्रासंगिक लगती हैं -

बहारों के दिन है कि पतझड़ का मौसम , यही प्रश्न फुलवारियों से तो पूछो ;

है शबनम में भीगी कि आंसू में डूबी , जरा बाग की क्यारियों से तो पूछो ;

अभी भी हजारों अधर ऐसे जिन पर , न मुस्कान के पान अब तक रचे है ;

हसीं चीज क्या है , खुशी चीज क्या है , यही प्रश्न लाचारियों से तो पूछो ।”

7 comments:

  1. अंकल, हम ही पहले टिप्पणी करने वाले बने जाते हैं। अब आपका बराबर लिखना होता रहेगा और हम सभी के साथ-साथ ब्लाग मित्रों को भी आपके विचारो से अवगत होने का अवसर मिलेगा।

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  2. अंकल, हम ही पहले टिप्पणी करने वाले बने जाते हैं। अब आपका बराबर लिखना होता रहेगा और हम सभी के साथ-साथ ब्लाग मित्रों को भी आपके विचारो से अवगत होने का अवसर मिलेगा।

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  3. “बहारों के दिन है कि पतझड़ का मौसम"
    के विचार अच्छे लगे धन्यवाद

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  4. चिट्ठो की दुनिया में आपका स्वागत है.
    मेरे ब्लॉग पर भी पधारे....
    - गंगू तेली

    http://gangu-teli.blogspot.com

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  5. अभी भी हजारों अधर ऐसे जिन पर , न मुस्कान के पान अब तक रचे है ;

    हसीं चीज क्या है , खुशी चीज क्या है , यही प्रश्न लाचारियों से तो पूछो ।”SHANDAR KAVITA KE LIYE BAHUT BAHUT BADHAI...........

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